रचना चोरों की शामत

मेरे बारे में

मेरे बारे में
कल्पना रामानी
Showing posts with label नया साल. Show all posts
Showing posts with label नया साल. Show all posts

Monday, 28 December 2015

नव उमंगों से सजाकर..

नव उमंगों से सजाकर थाल नूतन
फिर जनम ले आ गया है साल नूतन

कल तलक तो थी क्षितिज की आब फीकी  
रंग स्वर्णिम आज उसके भाल नूतन

बाँवरी बगिया खड़ी सत्कार करने
गूँथकर रस-गंध सित गुल-माल नूतन

आस के नव पुष्प-गुच्छों, पल्लवों संग   
तरुवरों पर उग रही हर डाल नूतन

बंधुओं! मंज़िल वही, पथ भी वही है
बस पगों की चाप में हो चाल नूतन

हाल बीता भूलकर दुश्वारियों का  
लेख लिक्खो, भारती के लाल! नूतन

नोच देना डंक सारे, अब डसें जो
ओढ़कर इंसानियत की खाल नूतन

वास्ता है देश का दृग खोल रखना
बिछ न जाए दिलजलों का जाल नूतन

हाथ अपने, हर्षमय हर वर्ष होगा
चाह यदि हो कल्पना चिरकाल नूतन

-कल्पना रामानी  

Friday, 25 December 2015

नए साल की भोर लो मुस्कुराई


सितारों ने भेजी भुवन को बधाई।
नए साल की भोर, लो मुस्कुराई।

गगन ने किया घोर, कोहरे से स्वागत
चमन ने सुगंधों से देहरी सजाई।

जले नव उमंगों के दिलदार दीपक
भुला बीती बेदिल हवा की ढिठाई।

यही दिन तो देता सकल साल संबल
बनी रहती हर मुख पे लालिम लुनाई।  

चलो कर लें पूरे, सपन इस बरस में
न हो लक्ष्य पाने में कोई ढिलाई।

बिठाएँ नवागत को मन के फ़लक पर 
कि देकर विगत को विहंगम विदाई।

नए जोश से हक़ की, फिर वो मुखर हो
जो आवाज़ कल तक गई थी दबाई।

चेताएँ उन्हें पथ बदल दें पतन का
नराधम निरे, क्रूर, कातिल कसाई। 

फलें कल्पना साल भर प्रार्थनाएँ
मिले रब की सबको, सतत रहनुमाई।

-कल्पना रामानी  

Thursday, 17 December 2015

नए साल में


खुशियों की नव-ज्योत जगाएँ, नए साल में।
उत्सव मिलकर आज मनाएँ, नए साल में।

कल खोया तो, अब पाने को, डटे रहें हम
भूल पुराना नव अपनाएँ, नए साल में।

काल न रोके कभी रुका, यह सत्य सनातन
साथ उसी के बढ़ते जाएँ, नए साल में।

पुनः जोश से हिम्मत का कर थाम निडर हो
अविजय को जय करके आएँ, नए साल में।

रात उजालों से हारी, हैं सदियाँ साक्षी
तमस काट नव-दीप जलाएँ, नए साल में।
धार इरादों की तीखी हो, प्रण हों पुख्ता
काँटों में भी राह बनाएँ, नए साल में।

शुभ कर्मों से हासिल कर सम्मान "कल्पना"
भारत माँ की शान बढ़ाएँ, नए साल में।

-कल्पना रामानी

Friday, 9 January 2015

खिल उठा गुलशन

खिल उठा गुलशन, गुलों में जान आई।
साल नूतन दे रहा सबको बधाई।

कह रहीं देखो,  नवेली सूर्य किरणें
अब वरो आगत, विगत को दो विदाई।

साज़ ने संगीत छेड़ा, गीत झूमे
मन हुआ चन्दन, गज़ल भी गुनगुनाई।

जिन समीकरणों में उलझा साल बीता
शुभ घड़ी सरलीकरण की उनके आई।

काट दें इस बार वे बंधन जिन्होंने
रूढ़ियों से बाँध की थी बेहयाई।

स्वत्व अपने हाकिमों  से कर लें हासिल
और जनता के हितों हित हो लड़ाई। 

हों न बैरी अब बरी, सुन लो सपूतों
मौत के पिंजड़े में तड़पें आततायी।

ले शपथ कर लें हरिक सार्थक जतन से
दुर्दिनों का अंत, अंतर की सफाई।

कर बढ़ाकर नष्ट वे अवरोध कर दें  
प्रगति-पथ पर जिनसे हमने चोट खाई।

साल नव अर्पित उन्हें हो आज मित्रों
भाग्य की ठोकर जिन्होंने, कल थी खाई।

जीत का सेहरा बँधे हर हार के सिर,
वर्ष नूतन की यही असली कमाई।

--कल्पना रामानी 


Wednesday, 1 January 2014

नूतन साल आया


पूर्ण कर अरमान, नूतन साल आया।
जाग रे इंसान, नूतन साल आया।

ख़ुशबुओं से तर हुईं बहती हवाएँ
थम गए तूफान, नूतन साल आया।

गत भुलाकर खोल दे आगत के रस्ते 
छेड़ दे जय गान, नूतन साल आया।

कर विसर्जित अस्थियाँ गम के क्षणों की
बाँटकर मुस्कान, नूतन साल आया। 

मन ये तेरा अब किसी भी लोभ मद से
हो न पाए म्लान, नूतन साल आया।

रब रहा है पूछ तेरी, क्या रज़ा है
माँग ले वरदान, नूतन साल आया।

आसमां आतुर तुझे हिय से लगाने
चढ़ नए सोपान, नूतन साल आया।

यत्न कर प्राणी, कहीं तेरी मनुजता
खो न दे पहचान, नूतन साल आया।

- कल्पना रामानी

Tuesday, 24 December 2013

काश दिखलाए राह साल नया


चित्र से काव्य तक










इस कदर ख्वाब वे सजा बैठे। 
देश को दाँव पर लगा बैठे।

मानकर मिल्कियत महज अपनी
तख्त औ ताज को लजा बैठे।

मानवी मूल्य सब चढ़े सूली
फर्ज़ को कब्र में दबा बैठे।

दीप रौशन किए फ़कत अपने
आशियाँ औरों का जला बैठे।

आब आँखों की लुट चुकी उनकी
आबरू स्वत्व की लुटा बैठे।

डूबते खुद अगर मुनासिब था
बेरहम दुखियों को डुबा बैठे।

काश! दिखलाए राह साल नया
जो गए व्यर्थ ही गँवा बैठे।


-कल्पना रामानी

समर्थक

सम्मान पत्र

सम्मान पत्र