रचना चोरों की शामत

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कल्पना रामानी
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Monday, 30 September 2013

सदा सद्भाव हों मन में

चित्र से काव्य तक












सदा सद्भाव हों मन में, जहाँ हर काम से पहले।
न डर होता वहाँ कोई, किसी अंजाम से पहले।
 
दुखों के पथ पे चलकर ही, सुखों का द्वार है खुलता,
सुखद छाया नहीं मिलती, प्रखरतम घाम से पहले।   
 
पसीना बिन बहाए तो, नहीं हासिल चबेना भी।
चबाने हैं चने लोहे के, रसमय आम से पहले।
 
अगन में द्वेष की जलते, निपट मन मूढ़ जो इंसान,
सुखों का सूर्य ढल जाता, है उनका शाम से पहले।
 
कदम चूमेंगी खुद मंज़िल, तुम्हारे मन-मुदित होकर,
ललक हो लक्ष्य पाने की, अगर आराम से पहले। 
 
कभी भी मित्र या मेहमाँ, लुभाते वे नहीं मन को,
चले आते अचानक जो, किसी पैगाम से पहले।
 
पुराणों से सुना हमने, बहाना प्रेम का था वो,
थी राधा को मुरलिया धुन, लुभाती श्याम से पहले।
 
मेरी तन्हाइयों की जब, कभी होगी कहीं चर्चा,
तुम्हारा नाम भी आएगा, मेरे नाम से पहले।  
 
कदम तो कल्पनामयखाने, आ पहुँचे तेरे चलकर,
नतीजा सोच ले मयकश! सुराही जाम से पहले।

--------कल्पना रामानी

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