रचना चोरों की शामत

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कल्पना रामानी
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Tuesday, 22 July 2014

साथ तुम हो



हो चला हर दिन मधुरतम, साथ तुम हो।
जा छिपा थक हारकर गम, साथ तुम हो।
 
मृदु हुई हैं शूल सी चुभती हवाएँ,
रस भरा है सारा आलम, साथ तुम हो।     
 
खिल उठीं देखो अचानक बंद कलियाँ,
कर रही सत्कार शबनम, साथ तुम हो।
 
फिर उगा सूरज सुनहरा ज़िंदगी में,
गत हुआ कुहरे का मौसम, साथ तुम हो।
 
बन चुके थे नैन नीरद जो हमारे,
अब कभी होंगे न वे नम, साथ तुम हो।
 
बाद मुद्दत चाँद पूनम का दिखा है,
सिर झुका कर है खड़ा तम, साथ तुम हो।
 
दीप फिर ऐसा जला बुझते हृदय में,
तोड़ देंगी आँधियाँ दम, साथ तुम हो।
 
इस जगत के बोझ बनते बंधनों से,
कल्पनाअब क्यों डरें हम, साथ तुम हो। 

-कल्पना रामानी   

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