
डाल-डाल पर जब लद जाते, फूल सलोने गुलाब के
स्वप्न गुलाबी हमें दिखाते, फूल सलोने गुलाब के
रस-सुगंध, सौन्दर्य-स्वामी
ये, हर लेते हर जन का मन
जब डालों पर खिल लहराते, फूल सलोने गुलाब के
ऋतु बसंत में हरिक बाग ज्यों, बन जाता है रंगमहल
बागों के राजा कहलाते, फूल सलोने गुलाब के
देख धूप के तेवर इनका, रूप
निखर जाता है और
सुर्ख-सूर्य से आँख मिलाते, फूल सलोने गुलाब के
हर मुश्किल को मीत बना लो, देते हमको सीख यही
काँटों से भी प्रीत निभाते, फूल सलोने गुलाब के
अलग-अलग ऋतु में आ मिलते, इनसे जब बिछड़े साथी
हँसकर उनको गले लगाते, फूल
सलोने गुलाब के
थोड़ा सा दें स्थान 'कल्पना', इनको अपने आँगन में
रंग-सुरभि से घर महकाते, फूल सलोने गुलाब के
-कल्पना रामानी
2 comments:
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (28-09-2015) को "बढ़ते पंडाल घटती श्रद्धा" (चर्चा अंक-2112) (चर्चा अंक-2109) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
अनन्त चतुर्दशी की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुन्दर भाव लिए रचना कल्पना जी |
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