रचना चोरों की शामत

मेरे बारे में

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कल्पना रामानी

Wednesday, 22 April 2015

छंद सब भूला पानी

कल तक कलकल गान सुनाता, बहता पानी
बोतल में हो बंद, छंद अब भूला पानी  
 
प्यास बुझाती थी जो सबकी दानी नदिया
है तलाशती हलक हेतु कुछ मीठा पानी

हाथ कटोरा धरे द्वार पर जोगी सावन  
मानसून से माँग रहा है भिक्षा, पानी

जब संदेश दिया पाहुन का काँव-काँव ने
सूने घट की आँखों में भर आया पानी

रहता है अब महलों वाले तरण-ताल में  
पनघट का दिल तोड़ दे गया धोखा पानी

जाने कब जल-पूरित हो पट पड़ा सकोरा
खुली छतों से नित्य पूछती चिड़िया पानी  

तैर रहा था जो युग-युग से भव-सागर में
वही “कल्पना” अब कलियुग में डूबा पानी 

-कल्पना रामानी 

4 comments:

Unknown said...

बहुत सुंदर रचना कल्पना रामानी जी...

Kailash Sharma said...

सच में अब पानी कहीं नहीं रहा न आँखों में, न नदियों में...बहुत सुन्दर और सटीक अभिव्यक्ति...

Madan Mohan Saxena said...

वाह . बहुत उम्दा,सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति
कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |

Sanju said...

सुन्दर व सार्थक प्रस्तुति..
शुभकामनाएँ।
मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।

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