
ज्यों ही मौसम में नमी होने लगी।
खुशनुमा यह ज़िंदगी होने लगी।
उपवनों में देखकर ऋतुराज को
सुर्ख रंगी हर कली होने लगी।
बादलों से पा सुधारस, फिर फिदा
सागरों पर हर नदी होने लगी।
चाँद-तारे तो चले मुख मोड़कर
जुगनुओं से रोशनी होने लगी।
रास्ते पक्के शहर के देखकर
गाँव की आहत गली होने लगी।
लोभ का लखकर समंदर “कल्पना”
इस जहाँ से बेरुखी होने लगी।
-कल्पना रामानी
2 comments:
सुन्दर शब्द संयोजन / सुन्दर अभिव्यक्ति
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