जब-जब
नींद बुलाऊँ, चलकर आतीं यादें
करवट-करवट
बिस्तर पर बिछ जातीं यादें
करूँ
बंद यदि दिल-दिमाग के, द्वार खिड़कियाँ
खोल
झरोखा मंद-मंद मूस्कातीं यादें
बन
पाखी पंखों पर अपने बिठा प्यार से
उड़
अनंत में, पुर-युग याद दिलातीं यादें
चल-चल
कर इनके पग शायद कभी न थकते
पर
मथ-मथ मेरा मन खूब थकातीं यादें
कभी
चुभातीं शूल, कभी फूलों की तरह से
रस-सुगंध
भर हृदय-चमन महकातीं यादें
अगर
रुलाई आ, कस ले अपने घेरे में
छेड़
गुदगुदी, खिल-खिल खूब हँसातीं यादें
उलझाकर
उर, भूतकाल में जगा रात भर
भोर
“कल्पना” नींद साथ ले जातीं यादें
-कल्पना रामानी
1 comment:
बहुत ही सुंदर और शानदार रचना।
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