रचना चोरों की शामत

मेरे बारे में

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कल्पना रामानी

Friday, 13 March 2015

जब जब नींद बुलाऊँ, चलकर आतीं यादें

चित्र से काव्य तक
जब-जब नींद बुलाऊँ, चलकर आतीं यादें
करवट-करवट बिस्तर पर बिछ जातीं यादें

करूँ बंद यदि दिल-दिमाग के, द्वार खिड़कियाँ
खोल झरोखा मंद-मंद मूस्कातीं यादें

बन पाखी पंखों पर अपने बिठा प्यार से
उड़ अनंत में, पुर-युग याद दिलातीं यादें

चल-चल कर इनके पग शायद कभी न थकते
पर मथ-मथ मेरा मन खूब थकातीं यादें

कभी चुभातीं शूल, कभी फूलों की तरह से  
रस-सुगंध भर हृदय-चमन महकातीं यादें

अगर रुलाई आ, कस ले अपने घेरे में
छेड़ गुदगुदी, खिल-खिल खूब हँसातीं यादें

उलझाकर उर, भूतकाल में जगा रात भर
भोर “कल्पना” नींद साथ ले जातीं यादें 

-कल्पना रामानी 

1 comment:

कहकशां खान said...

बहुत ही सुंदर और शानदार रचना।

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