जिसके कर कमलों से यह घर, स्वर्ग सा बना।
उस
माँ की हम, निस दिन मन से, करें वंदना।
जिसके
दम से, हैं जीवन में, सदा उजाले,
उसके
जीवन, में उजास की, रहे कामना।
जिसने
ममता, के आगे निज, किया निछावर,
उस
ममत्व को, करें नमन, रख शुद्ध भावना।
आजीवन
जो, रही दायिनी, संतति के हित,
उसके
हित के, लिए करे संतान प्रार्थना।
धूप
वरण कर, जिसने हमको सदा छाँव दी,
हम
उपाय वे करें न माँ को, छुए वेदना।
सारे
संचित पुण्य सौंपती, जो संतति को,
फर्ज़
यही, संतान उसे सौंपे न यातना।
जिस
देवी ने संस्कारों से सींचा हमको,
उसके
चूमें कदम, सफल तभी साध्य-साधना।
शीश
झुकाते सुर त्रिलोक के जिसके द्वारे,
वंचित
हो उस मातृ-प्रेम से कोई द्वार ना।
जिसने
पाया मूर्त मातृ-सुख इस जीवन में,
भव में वो इंसान सुखी है सदा “कल्पना”
भव में वो इंसान सुखी है सदा “कल्पना”
-कल्पना रामानी
1 comment:
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल मंगलवार (31-03-2015) को "क्या औचित्य है ऐसे सम्मानों का ?" {चर्चा अंक-1934} पर भी होगी।
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
Post a Comment