
जब तलक है दम, कलम चलती रहेगी
दर्द
दुखियों का गज़ल कहती रहेगी
साज़िशें
लाखों रचे चाहे समंदर
सिर
उठा सरिता मगर बहती रहेगी
जानती
अब नरपिशाचों से निपटना
बेधड़क
बेटी सफर करती रहेगी
बन्दिशों
की बाढ़ हो या सिर कलम हों
प्रेम
की पुरवा सदा बहती रहेगी
क्या
टिकेगी वो कभी सरकार, बोलो
जन-हितों
पर लात जो धरती रहेगी?
रोक
पाएगी क्या सूरज का निकलना
रात
को ढलना ही है, ढलती रहेगी
गम
के बाद आएँगे खुशियों के भी मौसम
‘कल्पना’ यों ज़िन्दगी कटती रहेगी
-कल्पना रामानी