पेड़ चम्पा की लुभातीं, डालियाँ फूलों भरी। शुष्क भू पर, ये कतारों, में खड़े दरबान से, दृष्ट होते सिर धरे ज्यों, टोपियाँ फूलों भरी। पीत स्वर्णिम पुष्प खिलते, सब्ज़ रंगी पात सँग, मन चमन को मोह लेतीं, झलकियाँ फूलों भरी। बाल बच्चों को सुहाता, नाम चम्पक-वन बहुत, जब कथाएँ कह सुनातीं, नानियाँ फूलों भरी। मुग्ध कवियों ने युगों से, पेड़ की महिमा समझ, काव्य ग्रन्थों में रचाईं, पंक्तियाँ फूलों भरी। पेड़ का हर अंग करता, मुफ्त रोगों का निदान, याद आती हैं पुरातन, सूक्तियाँ फूलों भरी। सूख जाते पुष्प लेकिन, झूमती सुरभित पवन, घूम आती विश्व में, ले झोलियाँ फूलों भरी। मित्र ये पर्यावरण के, लहलहाते साल भर, कटु हवाओं को सिखाते, बोलियाँ फूलों भरी। यह धरोहर देश की, रक्खें सुरक्षित "कल्पना", युग युगों फलती रहें, नव पीढ़ियाँ फूलों भरी। |
रचना चोरों की शामत
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Monday, 8 July 2013
डालियाँ फूलों भरी//गज़ल//
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1 comment:
यह धरोहर देश की, खोने न पाए साथियों,
युग युगों फलती रहें, नव पीढ़ियाँ फूलों भरी।
बहुत ही खूबसूरत भावपूर्ण गज़ल...
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