रचना चोरों की शामत

मेरे बारे में

मेरे बारे में
कल्पना रामानी
Showing posts with label कुछ और नहीं. Show all posts
Showing posts with label कुछ और नहीं. Show all posts

Monday, 1 September 2014

कुछ और नहीं



खुदा से माँगा मेहर के सिवा कुछ और नहीं। 
दुआएँ देती नज़र के सिवा कुछ और नहीं।
 
दुखा के गाँव का दिल चल दिये मिला लेकिन
दिलों से तंग शहर के सिवा कुछ और नहीं।
 
पिलाके नाग को पय, बाद पूज लो चाहे
मिलेगा दंश-ज़हर के सिवा कुछ और नहीं।
 
चमन को सींच लहू से है सोचता माली
गुलों की लंबी उमर के सिवा कुछ और नहीं।
 
लिया तो सौख्य नई पौध ने बुजुर्गों से
दिया है रंज-फिकर के सिवा कुछ और नहीं।
 
जवाबी तोहफे मिलेंगे हमें भी कुदरत से
सुनामी, बाढ़, कहर के सिवा कुछ और नहीं।
 
जो जानते ही नहीं, साज़, राग, उनके लिए
ग़ज़ल भी रूक्ष बहर के सिवा कुछ और नहीं।
 
विपन्न हैं जिन्हें दिखता हसीन दुनिया में
उदास शाम सहर के सिवा कुछ और नहीं।
 
कुछ ऐसा हो कि बसे कल्पनाहरिक जन के
हृदय में प्रेमनगर के सिवा कुछ और नहीं

-कल्पना रामानी  

समर्थक

सम्मान पत्र

सम्मान पत्र