रचना चोरों की शामत

मेरे बारे में

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कल्पना रामानी

Friday 1 February 2013

बसंत आया है





















डाल डाल पर गुल खिले, बसंत आया है।
पात पात हँसकर कहे, बसंत आया है।

चारु चंद्र की चाँदनी, विहार को उतरी।
स्वर्ग लोक सी भू दिखे, बसंत आया है।

सुर के साथ ठंडी हवा, फिज़ाओं में उमड़ी।
तार तार मन का गुने, बसंत आया है।

बाग बीच भँवरा करे, किलोल कलियों से।
फूल फूल तितली उड़े, बसंत आया है।

कुंज कुंज में कोकिला, खुमार से कुहकी।
आम्र बौर तरु पर लदे, बसंत आया है।

खूब दृष्टि को भा रहा, उफान नदियों का।
धार धार को सुर मिले, बसंत आया है।

स्वर्ण वर्ण सरसों खिली, विशाल खेतों में।
लख किसान हर्षित हुए, बसंत आया है।

नम हवाओं के स्पर्श से, प्रसन्न है वसुधा।
बीज बीज अंकुर उगे, बसंत आया है।

सृष्टि रूप नव से जगी, उमंग जीवन में।
प्रीत-पर्व घर घर मने, बसंत आया है।


-----कल्पना रामानी

2 comments:

Kailash Sharma said...

बहुत सुन्दर बासंती प्रस्तुति...

RAKESH KUMAR SRIVASTAVA 'RAHI' said...

बसंत आगमन की सूचना देती आपकी सुंदर बासंती गीत कल्पना जी।

मेरी पोस्ट का लिंक :
http://rakeshkirachanay.blogspot.in/

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