डाली मोगरे की...मेरी नज़र में
-कल्पना रामानी
शायर "नीरज गोस्वामी"

गूँथकर भावों भरा इक हार, ‘डाली मोगरे की’

गूँथकर भावों भरा इक हार, ‘डाली मोगरे की’
आई
मेरे हाथ में साकार, ‘डाली मोगरे की’
जोड़
खुशियाँ,
छोड़
गम,
अनुराग-मय
आँचल लपेटे
सामने
जैसे खड़ी इक नार, ‘डाली मोगरे की’
शब्द
गागर, भाव सागर, काफिये-बहरें
नवेली
है
अनोखा शिल्पमय संसार, ‘डाली मोगरे की’
हास्य-पुट, शृंगार-रस, संवेदनाएँ भर
लबालब
सौ
फ़साने कह रही फ़नकार, ‘डाली मोगरे की’
ये
नहीं केवल किताबी बात या जज़्बात मित्रों
बल्कि
अनुपम ‘कल्पना’ उपहार ‘डाली मोगरे की’
...
आज
अचानक अंतर्जाल पर ब्लॉग-जगत के सर्वाधिक लोकप्रिय शायरों में शुमार ‘नीरज गोस्वामी’ जी का ग़ज़ल संग्रह, ‘डाली मोगरे की’ कोरियर द्वारा
उपहार स्वरूप पाकर एक सुखद आश्चर्य से मन अभिभूत हो उठा। साथ में कुछ शब्द एक पुर्जे पर लिखे हुए थे कि वे मुझसे परिचित नहीं
हैं लेकिन मेरी दो ग़ज़लें भोपाल से प्रकाशित पत्रिका ‘गर्भनाल’ में पढ़कर अपना
संग्रह मुझे भेजने से स्वयं को रोक नहीं पाए। मैं स्वयं को शायरा तो मानती ही नहीं
क्योंकि मैं न तो उर्दू जानती हूँ, न ही कभी किसी चर्चा या मुशायरे में शामिल हुई
हूँ। किसी बहर आदि के नाम भी नहीं जानती, लेकिन उनका अपने लिए ‘बेहतरीन शायरा’ का सम्मान पूर्ण सम्बोधन
उनकी हस्तलिपि में पाकर इतनी प्रसन्नता मिली कि शब्दों में बयान करना संभव नहीं।
यह मेरे लिए किसी भी नामी सम्मान, पुरस्कार से कम नहीं।
प्रतिउत्तर में जब उनको ज्ञात हुआ कि मैं अपने
सीखने के दौर में उनको सालों से पढ़ती आई हूँ और उनकी ग़ज़लों की मन से प्रशंसक हूँ तो
उनको भी कम आश्चर्य नहीं हुआ। भला बताइये, मोगरे की महक भी किसी
परिचय की मोहताज होती है? एक साथ ही किताब
के अनेक पन्ने पलटती और पढ़ती गई, स्वाद लेकर पढ़ने के लिए अनेक शेरों पर निशान लगा
लिए, और सबसे पहले जो
भाव मन में आए उन्हें ग़ज़ल रूप में ही उसी समय कागज़ पर उतार लिया, वो आप ऊपर पढ़ ही चुके होंगे।
मैंने
कभी किसी किताब की समीक्षा नहीं लिखी, न ही लिख सकती हूँ। यद्यपि इस किताब पर अनेक
जाने पहचाने नामी शायरों/कवियों/द्वारा समीक्षाएँ और पाठकों की प्रतिक्रियाएँ क़लमबद्ध हुई हैं और अनेक बेहतरीन शेर चिन्हित किए गए हैं फिर भी अपने उद्गार प्रकट करने से मेरा मन भी नहीं
माना।
कहीं पर्वों का उल्लास, कहीं प्रेम-रस भरा मधुमास, कहीं हास-परिहास, तो कहीं बच्चों सी मासूमियत, पढ़ते पढ़ते मन-पाखी उड़कर अलग-अलग डाली की महक को समेटने कल्पनालोक में विचरने लगता है। भावों में संवेदनाओं का
सागर, कथ्य में सार, भाषा में प्रवाह, मधुरता, बहर-काफियों में शिल्पगत कोमलता, सहज और सरल कहन आदि
हर तरह के शब्द-रंग नीरज
जी की ग़ज़लों की विशेषता है, इसी कारण किताब को बार-बार पढ़ने की चाह पैदा होती है।
ज़िंदगी के हारे पलों को जीतने की राह दिखाते
हुए शेर, दिल-दिमाग की मृत
शिराओं को स्पंदित कर जीने की चाह जगाते हुए शेर, धूमिल कोनों में रोशनी के
चिराग जलाते हुए शेर, देश-दशा को चिंतातुर कुछ कर गुजरने को उकसाते हुए शेर, ऐसे ही नहीं कहे जा सकते। केवल शायर मन ही जानता है जब भाव-भूमि
के कण-कण को कलेजा निचोड़कर सींचा जाता है
तभी ग़ज़ल रूपी पौधा पल्लवित, पुष्पित होकर अपनी महक बिखेरने में कामयाब होता है।
आजकल देश व समाज में व्याप्त समर्थों के सितम, निर्बलों पर अत्याचार, अव्यवस्थाएँ, विषमताएँ आदि देखकर
कोई भी कलमकार चैन से नहीं बैठ सकता। ग़ज़ल विधा में हर तरह की बात आसानी से कही जा सकती है। साथ ही अंतर की अनंत गहराइयों में उतरकर, प्रकृति से एकाकार
होकर ही ऐसा सृजन किया जा सकता है।
सार यह कि यह किताब हर तरह से पाठकों को सम्मोहित
करने में सक्षम है। ग़ज़ल के शौकीनों के लिए यह किताब एक अनमोल खज़ाना साबित होगी, ऐसा मेरा विश्वास है।
कुछ अपनी पसंद के शेर नीचे दे रही हूँ, जिन्हें पढ़कर आप भी उन्हीं भावों के साथ एकाकार होकर आनंदित हो उठेंगे।
ग़ज़लों के इस सुगंधित गुलदस्ते के लिए नीरज जी को हार्दिक बधाई व अनंत शुभकामनाएँ। आशा है वे ऐसे ही चिरकाल तक अपनी लेखनी की महक बिखेरते हुए नई पीढ़ी का मार्गदर्शन करते रहेंगे।
*चाहते हैं लौ लगाना, आप गर भगवान से
प्यार करना सीखिये, पहले हरिक इंसान से
*दिल से निकली है ग़ज़ल, नीरज कभी तो देखना
झूमकर सारा ज़माना दिल से इसको गाएगा
*अपनी बदहाली में भी मत मुसकुराना छोड़िए
त्यागता खुशबू कहाँ है, मोगरा सूखा हुआ
*चाहते हैं लौ लगाना, आप गर भगवान से
प्यार करना सीखिये, पहले हरिक इंसान से
*दिल से निकली है ग़ज़ल, नीरज कभी तो देखना
झूमकर सारा ज़माना दिल से इसको गाएगा
*अपनी बदहाली में भी मत मुसकुराना छोड़िए
त्यागता खुशबू कहाँ है, मोगरा सूखा हुआ
*तमन्ना
थी गुज़र जाता,
गली
में यार की जीवन
हमें मालूम ही कब था यहाँ
मरना ज़रूरी है
*जहाँ
जाता हूँ मैं तुझको वहीँ मौजूद पाता हूँ
अगर लिखना तुझे हो ख़त
तेरा मैं क्या पता लिक्खूँ
*कौन
सुनता है 'नीरज' सरल सी ग़ज़ल
कुछ धमाके करो तो बजें
सीटियाँ
*हो
ख़फ़ा हमसे वो रोते जा रहे हैं
और हम रुमाल होते जा रहे
हैं
*तुम जिसे थे कोख ही में मारने की सोचते
कल बनेंगी वो सहारा देख
लेना बच्चियाँ
*ख़ुशबुएँ
लेकर हवाएँ ख़ुद-ब -ख़ुद आ जाएँगी
खोल कर देखो तो घर की
बंद सारी खिड़कियाँ
*खौफ
का खंजर जिगर में जैसे हो उतरा हुआ
आज का इंसान है कुछ इस तरह
सहमा हुआ
*हालत देख के तुम, कहते ख़राब नीरज
तुमने सुधारने को, बोलो तो क्या किया है?
*हर वक़्त वहाँ सहमे हुए मिलते हैं बच्चे
किलकारियाँ गूँजें जहाँ वो घर नहीं मिलते
*हालत देख के तुम, कहते ख़राब नीरज
तुमने सुधारने को, बोलो तो क्या किया है?
*हर वक़्त वहाँ सहमे हुए मिलते हैं बच्चे
किलकारियाँ गूँजें जहाँ वो घर नहीं मिलते
*तय
किया चलना जुदा जब भीड़ से
हर नज़र देखा, सवाली हो गई
*ज़िन्दगी
भरपूर जीने के लिए
ग़म ख़ुशी में फ़र्क़ ही बेकार
है
*जिंदगी
उनकी मज़े से कट गई
रंग 'नीरज' इसमें जो भरते रहे
*खिड़कियों से झाँकना बेकार है
बारिशों में भीग जाना सीखिये
*खिड़कियों से झाँकना बेकार है
बारिशों में भीग जाना सीखिये
*देश
के हालात बदतर हैं, सभी ने ये कहा
पर नहीं बतला सका, कोई भी अपनी
भूमिका
*कुछ नहीं देती है ये
दुनिया किसी को मुफ्त में
नींद ली बदले में जिसको रेशमी बिस्तर दिए
*रोटियों के सिवा गरीबों का
और कुछ भी इरम नहीं होता
*करें जब पाँव खुद नर्तन, समझ लेना कि होली है
हिलोरें ले रहा हो मन, समझ लेना कि होली है
*तरसती जिसके हों दीदार तक को आपकी आँखें
उसे छूने का आए क्षण, समझ लेना कि होली है
*काला कलूट ऐसा, छिप जाए रात में जो
फागुन में सुन सखी वो, लगता पिया गुलाबी
*उसे बाज़ार के रंगों से रँगने की ज़रूरत क्या
फ़क़त छूते ही मेरे जो, गुलाबी होता जाता है
*हुआ जो सोच में बूढ़ा, उसे फागुन सताता है
मगर जो है जवाँ दिल वो, सदा होली मनाता है
क़िताब
"डाली मोगरे की".....
शायर श्री नीरज गोस्वामी जी
प्रकाशक
..…शिवना प्रकाशन
पी
सी लैब ,सम्राट
कॉम्प्लेक्स बेसमैंट
बस
स्टैंड ,
सीहोर
- 46601 (म प्र )
फ़ोन
:07562405545,
07562695918
E-mail: shivna.prakashan@gmail.com
2 comments:
कल्पना जी
क्या कहूँ ? अपने बारे में ऐसे भाव भीने शब्द पढ़ कर मन भर आया। इस से अधिक लेखक को और भला क्या चाहिए। आपकी इस आत्मीय समीक्षा के समक्ष नतमस्तक हूँ , मेरे लिए इस से बड़ा उपहार और कोई नहीं हो सकता। बहुत कुछ कहना चाहता हूँ लेकिन भावानुसार शब्द नहीं मिल रहे। शुक्रिया कह कर आपके प्रयास को छोटा नहीं करूँगा । आपने किताब पढ़ी पसंद किया लेखन कृतार्थ हुआ।
नीरज
कल्पना जी आप ने डाली मोगरे की किताब के लिए बहुत सुन्दर शब्दों में अपनी बात कही है जो अक्षरसः सही है । किताब एक महकता गुलदस्ता है । व नीरज सर का सम्मानपूर्ण सम्बोधन वाकई पुरस्कार के समान है सर का ये मृद भाषी व प्रोत्साहित करने वाला व्यवहार उनके पाठकों व सीखने वालो के लिए बीच उन्हें लोकप्रिय बनाये हैं । इसी लिए शायद कहते हैं अच्छा इन्सान ही अच्छा शायर हो सकता है । आपके लेखन के लिए आपको असीम शुभकानाएं ।
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