रचना चोरों की शामत

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कल्पना रामानी
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Saturday, 6 April 2013

नम हवा फुलवारियों की

नम हवा फुलवारियों की, खूब भाती है मुझे। 
नित्य नव जीवन भरी कविता सुनाती है मुझे।
 
रात को जब नींद में, सपने सुनाते लोरियाँ
प्रात प्यारी शबनमी, आकर जगाती है मुझे।
 
लाल सूरज जब समंदर, में उतरता शाम को
तब क्षितिज की स्वर्ण सी, आभा लुभाती है मुझे
 
रूप जब विकराल होता, गर्मियों में धूप का
नीम की ठंडी हवा, झूला झुलाती है मुझे।
 
सावनी बरसात की, आँगन में लगती जब झड़ी 
नाव कागज़ की वो भूली, याद आती है मुझे।
 
शीत जब परवान चढ़ती, काँपता थर-थर बदन
धूप अपनी गोद में, हँसकर बिठाती है मुझे।
  
प्रकृति के हर अंश में है वंश जीवन का छिपा 
कल्पनाहर ऋतु परी, जीना सिखाती है मुझे।   
 
- कल्पना रामानी

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