धरती हुई निहाल, बधाई दी अंबर
ने।
जब हर नारी लगी गोद बेटी से भरने।
कन्या भ्रूण विसर्जित होने कभी न देगी
कृत संकल्प हुई जननी, अब रक्षित करने।
क्रूर-काल ने भी ठाना है, आएगा वो
प्राण पुत्रियों के न जन्म से पहले हरने।
गज़लें करने लगीं बेटियों पर ही शायरी
कलम चली बिटिया को कविता अर्पित करने
किया समर्थन समंदरों ने, ज्वार बढ़ाकर
नदियों ने दी ताल, गा उठे पर्वत-झरने
देख हवा के बदले रुख को, विस्मित होकर
झुका लिया है सिर नारी के, आगे नर ने
मानो रे इंसान! बाँझ है भू, बेटी बिन
रची ‘कल्पना’ सृष्टि सोचकर ही ईश्वर ने
- कल्पना रामानी

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