रचना चोरों की शामत

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कल्पना रामानी

Friday, 6 September 2013

पेड़ पावन नीम का//गज़ल//
















गर्मियों में खिलखिलाता, पेड़ पावन नीम का।
नम हवा की तह बिछाता, पेड़ पावन नीम का।
 
पीत होते पात सब पेड़ों के जब वैसाख में
लहलहाकर मुस्कुराता, पेड़ पावन नीम का।
 
सब्ज़ पत्तों का चँदोवा, तानकर भर दोपहर
धूप से राहत दिलाता, पेड़ पावन नीम का।
 
छाँव इसकी दृष्ट होती, धूप में ज्यों चाँदनी
श्वेत पुष्पों से रिझाता, पेड़ पावन नीम का।
 
आसमाँ से जब फुहारें, तन पे पड़तीं सावनी
डाल पर झूला झुलाता, पेड़ पावन नीम का।
 
हाँफकर प्यासे परिंदे, आसरा जब ढूँढते
अंक में अपने बसाता, पेड़ पावन नीम का।
 
फूल, पत्ते, छाल, डाली, बाँटता बनकर हक़ीम
रोग हर जड़ से मिटाता, पेड़ पेड़ पावन नीम का।
 
शुद्धतम इसकी हवा है, ज्यों कोई संजीवनी
जीव-जन का प्राण दाता, पेड़ पावन नीम का। 
 
गाँव हों या हों शहर, रोपें इसे, वर्धित करें
साथ जन्मों तक निभाता, पेड़ पावन नीम का।


- कल्पना रामानी

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