फिर सुनी पावन पुरा-कालीन गाथा कृष्ण की।
जो सदा है मोक्षदाई, द्वार, महिमा कृष्ण की।
विष्णु के अवतार जन्में, पापियों के नाश को
थे चकित भूलोक वासी, देख माया कृष्ण की।
देवकी-वसुदेव सुत, गोकुल में खेले औ बढ़े
गूँजती गलियों में थी, प्यारी मुरलिया कृष्ण की।
जब बने राजा बसाई, एक नगरी द्वारका
और देवी रुक्मिणी, कहलाई भामा कृष्ण की।
सारथी बन, वीर अर्जुन, के बढ़ाए हौसले
युद्ध के मैदान में फहरी पताका कृष्ण की।
जो दिये उपदेश उनका, सार कवियों ने रचा।
ग्रंथ-गीता में निहित वो, ज्ञानगंगा कृष्ण की।
जन्म-उत्सव साल हर, जन-जन मनाता देश में
झाँकियों में दृष्ट होती, रास-लीला कृष्ण की।
मटकियाँ माखन दही की, टाँग हर चौराहे पर
फोड़ कर, दुहराई जाती, बाल क्रीडा कृष्ण की।
गाँव-गोकुल, तीर यमुना, सून सब मोहन बिना
नारियाँ-नर याद करते, प्रीत राधा कृष्ण की।
1 comment:
बहुत ख़ूबसूरत अभिव्यक्ति...
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