द्वार पर दस्तक हुई, आई दिवाली
ज्योत
पर्वों की जगी आई दिवाली।
भू-भुवन
में रंग बिखरे, रोशनी के
रात
अमा पूनम बनी, आई दिवाली।
नव
उमंगों के पहनकर पंख नूतन
डाल
पर चहकी चिड़ी,
आई
दिवाली।
देख
झिलमिल दूर तक हर नयन-जल में
फिर
कमलिनी खिल उठी, आई दिवाली।
वस्त्र
नूतन,
ओढ़
बचपन,
है
मगन मन
ले
पटाखों की लड़ी,
आई
दिवाली।
प्रेम-पुरवा, जब चली पायल पहनकर
बाग
में चटकी कली, आई दिवाली।
सुन
सखी री! गाओ स्वागत-गान
मंगल
ले
दिया लक्ष्मी खड़ी, आई दिवाली।
लोक
सारे में दुआ, देखो अलौकिक
देवताओं
की घुली, आई दिवाली।
जो
बसे परदेस उनको ‘कल्पना’ फिर
लेके अपनों की गली, आई दिवाली।
लेके अपनों की गली, आई दिवाली।
-कल्पना रामानी
2 comments:
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (03-11-2015) को "काश हम भी सम्मान लौटा पाते" (चर्चा अंक 2149) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुन्दर रचना
शुभ दीपावली!
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