उनका ख़त आज डाकिया लाया।
फिर से भूला, हुआ पता लाया।
बाद मुद्दत के गुल खिला आँगन,
फिर से सावन, घनी घटा लाया।
चाँद मुझको दिखा अमावस में,
चाँदनी को भी सँग छिपा लाया।
रंग बिखरे युवा उमंगों के,
तंग मौसम, नई हवा लाया।
मेरा हर शे’र गूँजकर शायद,
उनको इक बार फिर बुला लाया।
दर्द इतना कभी न था दिल में,
दिल कहाँ से ये ‘कल्पना’ लाया।
//ओ बी ओ पर प्रकाशित //
---कल्पना रामानी
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