
जब
से गज़लों ने कहा है ‘आइना’
वाह!
सुनने को अड़ा है आइना
बात
उठी बल की तो पीछे क्यों रहे
पत्थरों
से जा भिड़ा है आइना
तोड़
दे कोई, न डरता रक्तबीज
टूक
हर, बनता नया है आइना
काँपते
हैं देख इसे, दागी नकाब
प्रश्न
जब-जब दागता है आइना
तुम
चिढ़ाओगे, चिढ़ाएगा तुम्हें
जो
हँसोगे, तो हँसा है आइना
हूबहू
हर चीज़ गढ़ देता तुरंत
कौन
जादू ने गढ़ा है आइना?
सत्यवादी
कोई जब कहता इसे
आइने
में देखता है आइना
“कल्पना” जो सामना उसका करे
शख्स
अब वो ढूँढता है आइना
-कल्पना रामानी
2 comments:
बहुत ही सुंदर और सार्थक रचना।
बहुत खूबसूरत
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