रचना चोरों की शामत

मेरे बारे में

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कल्पना रामानी

Thursday, 3 September 2015

कब मिलोगे मीत


कब मिलोगे मीत, इस बाबत लिखा है।  
प्यार से मैंने, तुम्हें यह ख़त लिखा है।  

मन तुम्हारा क्या मुझे अब भूल बैठा?
या कि तुमको अब नहीं फुर्सत, लिखा है।  

दिल धड़कता है तुम्हारा नाम लेकर
इस हृदय की हो तुम्हीं ताकत, लिखा है

ज़िंदगी में बस तुम्हें चाहा-सराहा
हो न अब चाहत मेरी आहत, लिखा है

रूठना या मान करना माना लेकिन   
मत लगाना प्यार पर तोहमत, लिखा है।  

हो नहीं पाषाण तुम, मैं जानती हूँ
मन खँगालो, मोम के पर्वत! लिखा है।  

कल्पना हो एक छोटा घर हमारा  
बस यही है अब मेरी हसरत, लिखा है।  

-कल्पना रामानी 

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