बेटी का हक, अगर आपने छीना तो
बुरा हाल हे मनुज! तुम्हारा होगा, तो
देर न होगी, बाँझ धरा के होने
में
जीव-जन्म का, अगर सिलसिला टूटा तो
प्रलय-पृष्ठ पर करने होंगे हस्ताक्षर
सृष्टि-चक्र को अगर अँगुष्ठ दिखाया तो
समाधिस्थ होना तय है हर जीवन का
समाधान यदि आज ही नहीं सोचा तो
नाश वरण कर लेगा, इस सुंदर जग का
अनजन्मी बेटी का मरण न रोका तो
कलियुग एक, कथा बनकर रह जाएगा
सार-कथ्य का नहीं ‘कल्पना’ समझा तो
- कल्पना रामानी
2 comments:
सार्थक रचना
सुन्दर भावधारा !
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