आँगन-आँगन
आशाओं के दीप जलाती
मन
रोशन हो जाते, जब दीवाली आती
छोड़
रंज-गम हो जाता ब्रह्मांड राममय
दिशा-दिशा
दुनिया की, मंगल-गान सुनाती
सपनों
का नव-सूर्य, उदित होता अंबर
में
और
बाँचती प्रात नवल, अपनों की पाती
देख-देख
कर दिव्य-ज्योत्सना, फैली जग में
प्राण-प्राण
के नेह-दियों की, लौ बढ़ जाती
तोरण
सजते द्वार, अल्पना
देहरी-देहरी
घर-घर
को हर घरणी पावन-धाम बनाती
जब
करता आह्वान जगत तब स्वर्ग-लोक से
सुख-समृद्धि
के ले चिराग, लक्ष्मी उतर आती
पर्वों
के अमृत से बनता जीवन उत्सव
दिल
मिलते इस तरह कि जैसे दीपक-बाती
मावस
को दे मात, कालिमा काट, ‘कल्पना’
दीपमालिका
तीन लोक तक रजत बिछाती
- कल्पना रामानी
2 comments:
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि- आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (21-10-2016) के चर्चा मंच "करवा चौथ की फिर राम-राम" {चर्चा अंक- 2502} पर भी होगी!
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुन्दर ... मधुर धब्द दीपावली के आगमन पर ...
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