रचना चोरों की शामत

मेरे बारे में

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कल्पना रामानी

Wednesday 19 October 2016

आशाओं के दीप

आँगन-आँगन आशाओं के दीप जलाती
मन रोशन हो जाते, जब दीवाली आती

छोड़ रंज-गम हो जाता ब्रह्मांड राममय
दिशा-दिशा दुनिया की, मंगल-गान सुनाती

सपनों का नव-सूर्य, उदित होता अंबर में
और बाँचती प्रात नवल, अपनों की पाती

देख-देख कर दिव्य-ज्योत्सना, फैली जग में
प्राण-प्राण के नेह-दियों की, लौ बढ़ जाती  

तोरण सजते द्वार, अल्पना देहरी-देहरी
घर-घर को हर घरणी पावन-धाम बनाती

जब करता आह्वान जगत तब स्वर्ग-लोक से
सुख-समृद्धि के ले चिराग, लक्ष्मी उतर आती

पर्वों के अमृत से बनता जीवन उत्सव
दिल मिलते इस तरह कि जैसे दीपक-बाती  

मावस को दे मात, कालिमा काट, ‘कल्पना
दीपमालिका तीन लोक तक रजत बिछाती
   
- कल्पना रामानी

2 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि- आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (21-10-2016) के चर्चा मंच "करवा चौथ की फि‍र राम-राम" {चर्चा अंक- 2502} पर भी होगी!
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

दिगम्बर नासवा said...

बहुत सुन्दर ... मधुर धब्द दीपावली के आगमन पर ...

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