शीतल ऋतु के नैन खुले, मौसम नैनों का नूर
हुआ।
जाग उठा जगती का कण-कण, क्षितिज सर्द सिंदूर
हुआ।
बाग-बाग चहके चिड़िया से, रंग-रंग के फूलों
संग
कलियों की मनुहारों से, भँवरों का मन मगरूर
हुआ।
सुविधाओं की उड़ीं पतंगें, नई उमंगें संग लिए
कुदरत हुई कृपालु सृष्टि का, दरियादिल दस्तूर
हुआ।
चारु-चंद्रिका चली विचरने, शीत-निशा के प्रांगण
में
सरिताओं का देख मचलना, सागर मद में चूर
हुआ।
कलमों पर वो चढ़ी खुमारी, लगे झूमने गीत ग़ज़ल
और “कल्पना” हर सरगम-सुर, सारंगी संतूर हुआ।-कल्पना रामानी
1 comment:
bahut kbub kalpna
di
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