रचना चोरों की शामत

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कल्पना रामानी

Monday, 12 December 2016

शीतल ऋतु के नैन खुले


शीतल ऋतु के नैन खुले, मौसम नैनों का नूर हुआ। 
जाग उठा जगती का कण-कण, क्षितिज सर्द सिंदूर हुआ।

बाग-बाग चहके चिड़िया से, रंग-रंग के फूलों संग
कलियों की मनुहारों से, भँवरों का मन मगरूर हुआ।     

सुविधाओं की उड़ीं पतंगेंनई उमंगें संग लिए
कुदरत हुई कृपालु सृष्टि का, दरियादिल दस्तूर हुआ।

चारु-चंद्रिका चली विचरने, शीत-निशा के प्रांगण में
सरिताओं का देख मचलना, सागर मद में चूर हुआ।

कलमों पर वो चढ़ी खुमारी, लगे झूमने गीत ग़ज़ल 
और कल्पनाहर सरगम-सुर, सारंगी संतूर हुआ।

-कल्पना रामानी

1 comment:

Suman Dubey said...

bahut kbub kalpna
di

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