रचना चोरों की शामत

मेरे बारे में

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कल्पना रामानी

Monday, 25 April 2016

ग़ज़लें रोज़ वही कहता है

जो रब याद सदा रखता है
कभी न उसको जग ठगता है

एक अदद रोटी का सपना
भूखों को हर दिन छलता है

शेर खड़ा कर घास डाल दो
तो क्या बकरा चर सकता है?

सिर्फ प्यार से हाथ फेरकर
देखो गुल कैसे खिलता है

जलता दीपक नहीं सोचता
सूर्य डूबता या उगता है

हँसी उड़ाओ, करो बुराई
फर्क बधिर को क्या पड़ता है

नूर खो चुका जो सावन में
हर दिन हरा उसे दिखता है

मन जिसका नीरोग 'कल्पना'
ग़ज़लें रोज़ वही कहता है 

-कल्पना रामानी 

1 comment:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (27-04-2016) को "हम किसी से कम नहीं" (चर्चा अंक-2325) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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