अगर
कहीं भी बंधु,
चिरागों
चर्चा पर हो
भव-भूतल
के बिसरे कोनों पर चर्चा हो
व्यर्थ
विलाप,
निराशा, रुदन, विसर्जित
करके
लक्ष्य-साधना, कर्म, हौसलों पर चर्चा
हो
सुमन
सभी,
खुश-रंग
सुरभि,
देते
बगिया को
नहीं
ज़रूरी,
सिर्फ
गुलाबों पर चर्चा हो
नाम
हमारा भव में,
चर्चित
हो न हो मगर
चाह, कलम के, अमृत-भावों पर चर्चा हो
सार
जहाँ हो,
ज्ञान-सिंधु
की बूँद-बूँद में
ऐसी
सरल,
सुभाष्य
किताबों पर चर्चा हो
छोड़ो
भी,
अब
नीरस जीवन का नित रोना
रसमय, गीत, ग़ज़ल, कविताओं पर चर्चा
हो
बेदम
हो जब भूख,
रोटियाँ
घर-घर पहुँचें
तभी
आसमाँ,
चाँद-सितारों
पर चर्चा हो
सदी
कह रही सुनो ‘कल्पना’ समय आ गया
बेटों
से रुख मोड़,
बेटियों
पर चर्चा हो
-कल्पना रामानी
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