अगर
कर्म पर जन का विश्वास होगा
हर
आँगन में खुशियों भरा हास होगा।
बदल
दें बसंती बयारों का रुख तो
चमन
का हरिक मास,
मधुमास
होगा।
उमीदों
के दीपक जलें जो हमेशा
तो
रातों में भी दिन का आभास होगा।
बजे
मातमी धुन,
अभावों
की जिस दर
वहाँ
कैसे लक्ष्मी का आवास होगा?
अगर
देश में ही,
उगें
रोटियाँ तो
किसी
भी पिता को क्या वनवास होगा?
मिले
जो सज़ा,
आरियों
को किए की
तो
वन-वन विहँसता अमलतास होगा।
गज़ल-गीत
कैसे,
न
गाएगा जन-मन
अगर
“कल्पना” स्वाद-रस खास
होगा।
-कल्पना रामानी
2 comments:
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (23 -04-2016) को "एक सर्वहारा की मौत" (चर्चा अंक-2321) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
Bahut sunder..
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