रचना चोरों की शामत

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कल्पना रामानी

Saturday, 16 April 2016

फूल बेला के बिना


कंत लौटा फूल बेला के बिना
कामिनी सँवरी नहीं गजरे बिना

किस तरह स्वीकार कर ले मानिनी
और कोई फूल मन भाए बिना

रह गई माला अधूरी भाव की
गुंथ न पाई प्रेम के धागे बिना

राह तकता ही रहा बेला उधर
रात इधर गुज़री प्रणय-पल के बिना 

देख फीके रंग ऐसे प्यार के
घन गए घर लौटकर बरसे बिना

चल पड़ी सुरभित हवा मायूस हो
बाग वापस ख़ुशबुएँ बाँटे बिना

कंत बोला मान भी जाओ प्रिये 
अब न आऊँगा कभी बेले बिना

कल्पना सुन बंद कलियाँ खिल गईं
भोर का तारा-गगन देखे बिना 

-कल्पना रामानी   

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