रचना चोरों की शामत

मेरे बारे में

मेरे बारे में
कल्पना रामानी

Friday 22 May 2015

कभी दर बंद होते हैं...

चित्र से काव्य तक
कभी दर बंद होते हैं, कभी खिड़की नहीं खुलती
मेरी किस्मत के ताले में, कोई चाबी नहीं लगती

मेरा मन चाहता उड़ना, मगर तन ओह! जाने दो
ये संस्कारों की सरहद अलविदा मुझको नहीं कहती

अगर खो जाऊँ ख्वाबों में, हक़ीक़त आ जगाती है
सखी लोरी! तुम्हारी बात, भी निंदिया नहीं सुनती

करूँ जितने जतन, हर बार धागा टूट जाता है
बिखर जाते हैं सुख-मोती, सपन-माला नहीं गुँथती

कहूँ जो गज़ल, बहर गायब, तो लय डर जाती गीतों से
कलम तो खूब चलती है, मगर कविता नहीं बनती

बुलाती हूँ अगर बचपन, तो हँसता मुझपे आईना
बताए तो, ज़रा ये वो, उमर उसकी नहीं ढलती?

कहूँ जग को अगर अपना, मुझे पागल जगत कहता
करूँ क्या “कल्पना” मेरी, कहीं मर्ज़ी नहीं चलती

-कल्पना रामानी  

2 comments:

Unknown said...

Kya baat h... Bahut sunder!!! 💝

Unknown said...

Bahut khooob

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