माँगकर सम्मान पाने, का चलन देखा यहाँ
मान
अपना खुद घटाने, का चलन देखा यहाँ...
किस
तरह साहिल बचाए, डूबते को कर पकड़
साहिलों
को ही डुबाने, का चलन देखा यहाँ
इस
तरह सिक्के उछलते, हारते हर बार अबल
इनका
हक उनको दिलाने का, चलन देखा यहाँ
खुश
किसी को देखकर, खुश ये ज़माना कब हुआ?
कंठ
खुशियों का दबाने, का चलन देखा यहाँ
पूछता
कोई नहीं, क्या ख्वाहिशें हैं बाग की
ख़ुशबुओं
पर हक़ जताने, का चलन देखा यहाँ
नित्य
नव परिधान में इक घोषणा सजती मगर
घोषणाओं
पर न जाने का, चलन देखा यहाँ
परिजनों के, प्रिय वतन के, लाख दिल तड़पा
करें
दूरियों
से दिल लगाने का, चलन देखा यहाँ
वर
दिये विज्ञान ने पर “कल्पना” क्या कीजिये
चाबियाँ
उलटी घुमाने का, चलन देखा यहाँ!
-कल्पना रामानी
2 comments:
बढ़िया
सुन्दर, आज यही हो रहा है देश में , आपने सही हालात को उकेर दिया है
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