रात पर जय प्राप्त कर जब,
जगमगाती है सुबह।
किस तरह हारा अँधेरा, कह सुनाती है सुबह।
त्याग बिस्तर, नित्य तत्पर, एक नव ऊर्जा लिए,
लुत्फ लेने भोर का, बागों बुलाती है सुबह।
कालिमा को काटकर, आह्वान करती सूर्य का,
बाद बढ़कर, कर्म-पथ पर, दिन बिताती है सुबह।
बन कभी तितली, कभी चिड़िया, चमन में डोलती,
लॉन हरियल पर विचरती, गुनगुनाती है सुबह।
फूल कलियाँ मुग्ध-मन, रहते सजग सत्कार को,
क्यारियों फुलवारियों को, खूब भाती है सुबह।
किस तरह हारा अँधेरा, कह सुनाती है सुबह।
त्याग बिस्तर, नित्य तत्पर, एक नव ऊर्जा लिए,
लुत्फ लेने भोर का, बागों बुलाती है सुबह।
कालिमा को काटकर, आह्वान करती सूर्य का,
बाद बढ़कर, कर्म-पथ पर, दिन बिताती है सुबह।
बन कभी तितली, कभी चिड़िया, चमन में डोलती,
लॉन हरियल पर विचरती, गुनगुनाती है सुबह।
फूल कलियाँ मुग्ध-मन, रहते सजग सत्कार को,
क्यारियों फुलवारियों को, खूब भाती है सुबह।
इस मधुर बेला को जीने, “कल्पना” उठ चल पड़ें,
रंग जीवन के निहारें, जो दिखाती है सुबह।
-कल्पना रामानी
4 comments:
bahut sundar gajal hai kalpana ji , hardik badhai aapko
bahut sundar !
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New Post: Arrival of Spring !
वाह साक्षात सुबह साकार कर दी।
अंतस को सुबह की ताज़गी से प्रफुल्लित करती बहुत सुन्दर प्रस्तुति...
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