रचना चोरों की शामत

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कल्पना रामानी

Saturday, 15 February 2014

फिर बसंत का हुआ आगमन


बदला मौसम, फिर बसंत का, हुआ आगमन।
खिला खुशनुमा, फूल-तितलियों, वाला उपवन।
 
कुदरत के नव-रंग देखकर, प्रेम अगन में
हुआ पतंगों का भी जलने को आतुर मन।
 
पींगें भरने, लगे प्रेम की, भँवरे कलियाँ
लहराता लख, हरित पीत वसुधा का दामन।
 
पल-पल झरते, पात चतुर्दिश, बिखरे-बिखरे
रस-सुगंध से, सींच रहे हैं, सारा आँगन।
 
देख जुगनुओं वाली रैना, पर्वत-झरने
खा जाता है मात चाँदनी का भी यौवन।
 
लगता है ज्यों, भू पर उतरी एक अप्सरा
प्रीत-प्रीत बन जाता है यह मदमाता मन। 
 
रूप प्रकृति का बना रहे यह काश! "कल्पना"  
और बीत जाए इनमें, यह सारा जीवन।

-कल्पना रामानी   

3 comments:

Rajendra kumar said...

बहुत ही सुन्दर और सार्थक अभिव्यक्ति।

Unknown said...

आपकी बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति
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आपकी इस अभिव्यक्ति की चर्चा कल सोमवार (03-03-2014) को ''एहसास के अनेक रंग'' (चर्चा मंच-1540) पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर…!

Kailash Sharma said...

बहुत सुन्दर शब्द चित्र... ख़ूबसूरत प्रस्तुति..

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