छोड़ आए गाँव में जो, ज़िंदगानी याद है।
सौंपकर पुरखे गए वो, हर निशानी याद है।
गाँव था सारा हमारा, ज्यों गुलों का इक चमन
शीत, गर्मी, बारिशों की, ऋतु सुहानी याद है।
एक हो खाना खिलाना, रूठ जाने की अदा
फिर मनाने मानने की, वो कहानी याद है।
छुप-छुपाते, खिलखिलाते, हँस हँसाते रात दिन
फूल, बगिया, बेल-चम्पा, रात रानी याद है।
मुँह अँधेरे, त्याग बिस्तर, भागना भूले कहाँ?
हाथ में माँ से मिली गुड़, और धानी याद है।
ज्ञान गुण के बोध का, कितना सुखद अहसास था
जो बुजुर्गों ने हमें दी, सीख वानी याद है।
आ गया उस गाँव में, झोंका अचानक लोभ का
जब शहर ने छीन ली, हमसे जवानी याद है।
-कल्पना रामानी
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