उँगलियों से यूँ न मसलो, फूल कहता है।
देख मुझको क्यारियों में, बाल खुश कितने!
प्रेम से फुलवारी सींचो, फूल कहता है।
बाँधकर जूड़े में क्यों तुम, प्राण हरते हो?
छेदकर मत हार गूँथो, फूल कहता है।
रौंदते हो पग तले, निर्दय हो क्यों इतने ?
यूँ प्रदूषण मत बढ़ाओ, फूल कहता है।
ईश भी नहीं चाहता कृति, नष्ट हो उसकी।
मंदिरों में दम न घोंटो, फूल कहता है।
शूल भी करते सुरक्षा, बन मेरे साथी।
तुम मनुष हो, कुछ तो सोचो, फूल कहता है।
नष्ट तो होना ही है यह, सच है जीवन का।
वक्त से पहले न मारो, फूल कहता है।
मैं तो हूँ पर्यावरण का, एक सेवक ही।
शुद्ध साँसों को सहेजो, फूल कहता है।
सूखकर गुलशन में बिखरूँ, शेष है चाहत।
बीज मेरे फिर से रोपो, फूल कहता है।
- कल्पना रामानी
5 comments:
behad sundar gajal kalpana didi , aapne prakrati ke rang ko gajal me bhi khubsurat piroya hai , ek sandesh deti hui gajal badhai aapko
बहुत ही गहन विचार..आप तो गजलों की भी रानी निकली...आप स्वस्थ रहे खूब लिखे..शुभकामनाए..
☆★☆★☆
शूल भी करते सुरक्षा, बन मेरे साथी।
तुम मनुष हो, कुछ तो सोचो, फूल कहता है।
नष्ट तो होना ही है यह, सच है जीवन का।
वक्त से पहले न मारो, फूल कहता है।
वाऽहऽऽ…!
फूल के मन की बात को अच्छी अभिव्यक्ति दी आपने...
आदरणीया कल्पना रामानी जी
सुंदर रचना के लिए साधुवाद
आपकी लेखनी से सदैव सुंदर श्रेष्ठ सार्थक सृजन होता रहे...
हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !
मंगलकामनाओं सहित...
-राजेन्द्र स्वर्णकार
बहुत सुन्दर संयोजन रंग, चित्र और भावनाओं का...आप सचमुच बहुमुखी प्रतिभा की धनी हैं..
फूल को लेकर आपने बेहद खूबसूरत गज़ल लिखी है यह,
बहुत खूब...।
Post a Comment