रचना चोरों की शामत

मेरे बारे में

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कल्पना रामानी

Saturday, 3 September 2016

अच्छा लगता है

नित्य नवेली भोर, टहलना अच्छा लगता है
चिड़ियों सँग, चहुँ ओर, चहकना अच्छा लगता है

जब बहार हो, रस फुहार हो, वन-बागों के बीच
मुस्काती कलियों से मिलना, अच्छा लगता है

गोद प्रकृति की, हरी वादियाँ, जहाँ दिखाई दें  
बैठ पुरानी यादें बुनना, अच्छा लगता है

झील किनारे, बरखा-बूँदों में सखियों के साथ
इसकी उसकी, चुगली करना, अच्छा लगता है

सूर्योदय, सूर्यास्त काल में, सागर तट जाकर 
शंख-सीपियाँ, चुनना-गिनना, अच्छा लगता है

चाह, भरी महफिल में कोई मुझको भी गाए
गीत-गज़ल का हिस्सा बनना, अच्छा लगता है

दिया कल्पना तूने जो भी, हर ऋतु में उपहार 
कुदरत तेरा वो हर गहना, अच्छा लगता है। 

-कल्पना रामानी 

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