नित्य
नवेली भोर, टहलना अच्छा लगता है
चिड़ियों सँग, चहुँ ओर, चहकना अच्छा लगता है
जब
बहार हो, रस फुहार हो, वन-बागों के बीच
मुस्काती
कलियों से मिलना, अच्छा लगता है
गोद
प्रकृति की, हरी वादियाँ, जहाँ दिखाई दें
बैठ
पुरानी यादें बुनना, अच्छा लगता है
झील
किनारे, बरखा-बूँदों में सखियों के साथ
इसकी
उसकी, चुगली करना, अच्छा लगता है
सूर्योदय, सूर्यास्त
काल में, सागर तट जाकर
शंख-सीपियाँ, चुनना-गिनना, अच्छा लगता है
चाह, भरी महफिल में कोई मुझको भी गाए
गीत-गज़ल
का हिस्सा बनना, अच्छा लगता है
दिया
‘कल्पना’ तूने जो भी, हर ऋतु
में उपहार
कुदरत
तेरा वो हर गहना,
अच्छा लगता है।
-कल्पना रामानी
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