रचना चोरों की शामत

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कल्पना रामानी

Thursday, 15 October 2015

मातृ-शक्ति की छाँव अपरिमित


माँ दुर्गा के लिए चित्र परिणाम
सकल विश्व में फैली चारों ओर जीव हित। 
मंगलकारी मातृ-शक्ति की छाँव अपरिमित।

जब-जब आती पाप-लोभ की बाढ़ जगत में
नव-दुर्गा तब प्राण हमारे करती रक्षित।   

मनता जब नवरात्रि-पर्व हर साल देश में
दिव्य प्रभा से मिट जाता सारा तम दूषित।

घटस्थापना, जगराते, माहौल बनाते
जिसमें होते सकल दुष्टतम भाव विसर्जित।

चलता दौर उपवास भजन का जब तक घर-घर
माँ देवी से माँगे जाते, वर मनवांछित। 
     
देशबंधुओं, नाम देश का पर्वों से ही     
विश्व-फ़लक पर स्वर्ण अक्षरों में है अंकित।

अमर रहें ये परम्पराएँ, युगों “कल्पना”  
अजर रहे यह संस्कारों की ज्योत-अखंडित। 

- कल्पना रामानी  

2 comments:

कविता रावत said...

बहुत सुन्दर सामयिक प्रस्तुति !
नवरात्रि की हार्दिक मंगलकामनाएं!

Onkar said...

बहुत सुंदर

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