बरसे मेघ, चलो तन धो लो
पर
पहले मैला मन धो लो
नज़र-समेटो
मेह, नेह का
वृथा-व्यथा
का आँजन धो लो
कालिख
लगी जहाँ चेहरे पर
नकब
उतारो आनन धो लो
ताक
रहे क्यों दूजों के घर
पहले
अपना आँगन धो लो
साँसें
सिसक रहीं तुलसी की
मिले
उसे ज्यों धड़कन, धो लो
दाग
‘कल्पना’ रहे न बाकी
कुछ
इस तरह अपनापन धो लो
-कल्पना रामानी
2 comments:
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (21-06-2015) को "योगसाधना-तन, मन, आत्मा का शोधन" {चर्चा - 2013} पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
अन्तर्राष्ट्रीय योगदिवस की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
सुन्दर प्रस्तुति
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