रचना चोरों की शामत

मेरे बारे में

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कल्पना रामानी

Monday 25 August 2014

सोचा है यही उनसे मिलकर हम


सोचा है यही उनसे मिलकर, हर बात पुरानी कह देंगे।
जो बीत चुकी अब तक हम पर, अपनी ही जुबानी कह देंगे।
 
मिल जाए अगर वो राहों में, हो गहरा प्रेम निगाहों में,
इस बार हमें प्रिय दे जाओ, कुछ नेह-निशानी, कह देंगे।
 
यदि उसने सुख-दुख पूछा तो, कुछ अपना हाल सुनाया तो,
तुम बिन अब हमको लगती है, यह दुनिया फ़ानी कह देंगे।
 
ले नाम उसी का फिरते हैं, यादों पे गुज़ारा करते हैं,
मिलना न हुआ तो लोग हमें, पगली दीवानी कह देंगे।
 
बेदर्द दिलों की भीड़ यहाँ, कहीं और बसाएँ एक जहाँ,
अब संग तुम्हारे ही हमको, यह उम्र बितानी कह देंगे।
 
माना कि लबों पर बोल नहीं, पर हैं इंसाँ पाषाण नहीं। 
चुप रहकर भी इन नैनों से, हम अपनी कहानी कह देंगे।
 
यदि हमसे वो कर ले वादा, यह जीवन साथ बिताने का,
तो शेष कल्पनारस्म नहीं, कुछ और निभानी कह देंगे।

-------कल्पना रामानी

1 comment:

कालीपद "प्रसाद" said...

बेदर्द दिलों की भीड़ यहाँ, कहीं और बसाएँ एक जहाँ,
अब संग तुम्हारे ही हमको, यह उम्र बितानी कह देंगे।
पूरा ग़ज़ल ही लाजवाब है !
धर्म संसद में हंगामा
क्या कहते हैं ये सपने ?

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