रचना चोरों की शामत

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कल्पना रामानी

Friday, 30 August 2013

फूल मुरझाया हुआ बाद सजाए न बने //गज़ल//














फूल मुरझाया हुआ,  बाद सजाए न बने।
 ऐसा उजड़ा है चमन, मन का बसाए न बने।
 
है गिला ये कि हमें  दर्द भी अपनों से मिला।
हो दवा लाख मगर टीस दबाए न बने।
 
दिल पे रखते  न अगर बात,  न बनती दूरी।
दिल से जो दूर  हुए, रीत निभाए न बने।  
 
अर्श को फर्श दिखाना, है ज़माने का चलन।
हो जहाँ खार वहाँ प्यार दिखाए न बने।
 
जग हो बैरी भी तो क्या, मीत बनाएँ रब को।
रब से जो दूर हुए  शीश झुकाए न बने। 
 
कल्पना शूल ही रहते हों ज़ुबाँ पर जिनकी।
क्या बने बात  जहाँ बात बनाए न बने।    

-------कल्पना रामानी

3 comments:

कालीपद "प्रसाद" said...

वाह बहुत उम्दा ग़ज़ल !
latest postएक बार फिर आ जाओ कृष्ण।

Darshan jangra said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति.. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉग समूह में सामिल की गयी और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा कल - रविवार -01/09/2013 को
चोर नहीं चोरों के सरदार हैं पीएम ! हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः10 पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया आप भी पधारें, सादर .... Darshan jangra




Dr. Shorya said...

बेहद सुंदर गजल शुभकामनाये

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