रचना चोरों की शामत

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कल्पना रामानी

Saturday, 31 August 2013

आज हैं आज़ाद हम//ग़ज़ल//



कह रहीं बहती हवाएँ, आज हैं आज़ाद हम।
देशप्रेमी साथ गाएँ, आज हैं आज़ाद हम।
 
सीढ़ियाँ स्वधीनता की, किस तरह से तय हुईं
बाल बच्चों को सुनाएँ, आज हैं आज़ाद हम।
 
मुश्किलों के व्यूह तोड़ें, जोश हो अभिमन्यु सा
बन के अर्जुन लक्ष्य पाएँ, आज हैं आज़ाद हम।
 
हम अगर चाहें तो हर, नदिया की धारा मोड दें
पास साहिल को बुलाएँ, आज हैं आज़ाद हम।
 
याद हों राणा, शिवा, बिस्मिल, भगत, गाँधी, सुभाष
शीश श्रद्धा से झुकाएँ, आज हैं आज़ाद हम।
 
सींच दें कण-कण धरा का, बादलों को बाँधके
नित नया सूरज उगाएँ, आज हैं आज़ाद हम।
 
देश का उत्थान हो, जड़ से दमन आतंक का
शत्रु को दोज़ख दिखाएँ, आज हैं आज़ाद हम।
 
बैर देशी से करे जो, गैर कह दुत्कार दें
मान हिन्दी का बढ़ाएँ, आज हैं आज़ाद हम।
 
हर शिखर तानें तिरंगा, और पावन पर्व ये
गर्व से मिलकर मनाएँ, आज हैं आज़ाद हम।

-कल्पना रामानी  
//अनुभूति में प्रकाशित//

1 comment:

Dr. Shorya said...

बेहद सुंदर गजल

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