जिसे भूले, तुमको, वही ढूँढती है।
तुम्हें गाँव की हर खुशी ढूँढती है।
सुखाकर नयन जिसके आए शहर को
झुलाया कभी था सहारा दे तुमको
वो पीपल की डाली हरी ढूँढती है।
जहाँ छोड़ आए हो कागज़ की किश्ती
उस आँगन में सावन-झड़ी ढूँढती है।
चले आए रख लात सीने पे जिसके
तुम्हारे निशां वो गली ढूँढती है।
उखाड़ी जहाँ से, जड़ अपनी वहीं पर
तुम्हें ‘कल्पना’ ज़िंदगी ढूँढती है।
-कल्पना रामानी
2 comments:
सुन्दर..
खूबसूरत शब्द !
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