नव
उमंगों से सजाकर थाल नूतन
फिर
जनम ले आ गया है साल नूतन
कल
तलक तो थी क्षितिज की आब फीकी
रंग
स्वर्णिम आज उसके भाल नूतन
बाँवरी
बगिया खड़ी सत्कार करने
गूँथकर
रस-गंध सित गुल-माल नूतन
आस
के नव पुष्प-गुच्छों, पल्लवों संग
तरुवरों
पर उग रही हर डाल नूतन
बंधुओं!
मंज़िल वही, पथ भी वही है
बस
पगों की चाप में हो चाल नूतन
हाल
बीता भूलकर दुश्वारियों का
लेख
लिक्खो,
भारती
के लाल! नूतन
नोच
देना डंक सारे,
अब
डसें जो
ओढ़कर
इंसानियत की खाल नूतन
वास्ता
है देश का दृग खोल रखना
बिछ
न जाए दिलजलों का जाल नूतन
हाथ
अपने, हर्षमय हर वर्ष
होगा
चाह
यदि हो ‘कल्पना’ चिरकाल नूतन
-कल्पना रामानी
1 comment:
खूबसूरत अलफ़ाज़ कल्पना जी
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