पसीने
से जब-जब नहाती है गर्मी
हवाओं
से हमको मिलाती है गर्मी
उगे-भोर, चिड़िया
बनी चहचहाती
चमन
की तरफ लेके जाती है गर्मी
पकड़
हाथ चलती है फुलवारियों में
झकोरों
से झूला झुलाती है गर्मी
छतों
पर सितारों की छाया में शब भर
सरस
रागिनी गा सुलाती है गर्मी
विजन
वन में पेड़ों की बन छाँव सुखकर
महक
के गलीचे बिछाती है गर्मी
अगम
झील में, ताल में, नाव खेकर
धवल
धार-जल में घुमाती है गर्मी
पहाड़ों
पे, फूलों-भरी वादियों में
हमें
देके न्यौता बुलाती है गर्मी
पिला
जूस, लस्सी या नींबू शिकंजी
तपन
की चुभन से बचाती है गर्मी
डरें
‘कल्पना’ क्यों भला गर्मियों से
कि राहत भी लेकर ही आती
है गर्मी
-कल्पना रामानी
3 comments:
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल मंगलवार (24-03-2015) को "जिनके विचारों की खुशबू आज भी है" (चर्चा - 1927) पर भी होगी।
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
शहीदों को नमन करते हुए-
नवसम्वत्सर और चैत्र नवरात्रों की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
वाह खूब गर्मी का आगमन
बहुत सुन्दर गज़लें. गर्मी का मौसम का चित्रमय वर्णन. गर्मी सताती है तो शीतलता की बयार का भी कभी कभी सृजन क्ज्ती है. कल्पना जी बधाई.
Post a Comment