पेशावर में १७ दिसंबर २०१४ को आतंकी हमले में मारे गए स्कूली बच्चों के प्रति श्रद्धांजलि स्वरूप कुछ भाव
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रौंदकर
मासूम जानें बेफिकर जो क्रूरता
किसलिए
हे ईश! तुमने दी उसे बल-सम्पदा।
शक्ल
से मानव मगर हैं दानवों से बद करम
दिल
नहीं सीने में रखते,
चीरते दिल बेखता।
कर
न पाए हाथ जो बेबस फरिश्तों पर रहम
बेरहम
वे हाथ सारे काट दो मेरे खुदा।
भूल
जाएगा ज़माना दे क्षणिक श्रद्धांजली
पर
सितम का सिर कलम करने बढ़ेगा न्याय क्या?
चैन
क्या मिल पाएगा नन्हें गुलों की रूह को?
काँपती
है रूह भी यह सोचकर अब “कल्पना”!
--कल्पना रामानी
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