रचना चोरों की शामत

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कल्पना रामानी

Saturday, 14 September 2013

पहला प्यार हिन्दी





हिन्दी हमारी के लिए चित्र परिणाम

जूझती थी बेड़ियों से, जो कभी लाचार हिन्दी। 
उड़ रही पाखी बनी वो, सात सागर पार हिन्दी। 

कोख से संस्कृत के जन्मी, कोश संस्कृति का रचाया।
संस्कारों को जनम दे, कर रही उपकार हिन्दी।

जान लें कानूनविद, शासन पुरोधा, राज नेता।
राज में औ काज में है, आदि से हक़दार हिन्दी।

जो गुलामी दे गए थे, क्यों सलामी दें उन्हें हम?
क्यों उन्हें सौंपें वतन, जिनको नहीं स्वीकार हिन्दी।

जो करे विद्रोह, द्रोही, देश का उसको कहेंगे।
हाथ में लेकर रहेगी, अब सकल अधिकार हिन्दी।

है यही ताकत हमारे, स्वत्व की, स्वाधीनता की।
काटने बाधाओं को, बन जाएगी तलवार हिन्दी।

मान हर भाषा को देता, यह सदय भारत हमारा।
पर ज़रूरी है करें स्वीकार सब साभार हिन्दी।

क्या नहीं होता कलम से, ठान लें जो आप मित्रो!
अब कलम हर हाथ में हो, साथ पैनी धार हिन्दी।


आज अपनी भारती पर, नाज़ भारत वासियों को

हो चुकी भारत के जन-गण, मन का पहला प्यार हिन्दी

-कल्पना रामानी

5 comments:

Meena Pathak said...

क्या नहीं होता कलम से, ठान लें जो आप मित्रो!
अब कलम हर हाथ में हो, साथ पैनी धार हिन्दी। ...बहुत सुन्दर दी .. हार्दिक बधाई

Unknown said...

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सम्पादक (Editor)
[Muzaffarpur,Bihar]
+91 9122026165


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Ghulam Fareed Ansari
सचिव एवं सलाहकार
(Consultant,Secretary)

[PATNA ,Aara ,Bihar]

धन्यवाद !

Unknown said...

आदर्तव्य
कल्पना रामानी जी
आकी कविताओँ मेँ अविरल धार है जोकि दिनकर जी की कविताओँ के समक्ष

ashu said...

कोख से संस्कृत के जन्मी ---यह गलत है यह पर्शियन भाषा से आई है
बाकी जो गीत है वो प्रेणादायक है. मेरे वक्तिगत जानकारी के अनुसार इसमें दुनिया के सभी भाषा के कुछ न कुछ शब्द समाहित किये हैं फिर भी अपनी पहचान नहीं खोई है, इसलिए मैं इसे भाषा का समुन्दर कहता हूँ. और यह सिर्फ भाषा नहीं बल्कि हमारे संस्कृति और उदारता को भी दर्शता है.

Unknown said...

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