सुनहरी भोर बागों में, बिछाती ओस की बूँदें!
नयन का नूर होती हैं, नवेली ओस की बूँदें!
चपल भँवरों की कलियों से, चुहल पर मुग्ध सी होतीं,
सुरों में साथ देती हैं, सुहानी ओस की बूँदें!
चितेरा कौन है जो रात, में जाजम बिछा जाता,
न जाने रैन कब बुनती, अकेली ओस की बूँदें!
करिश्मा है ये कुदरत का, या फिर जादू कोई उसका
घुमाकर जो छड़ी कोई, गिराती ओस की बूँदें!
नवल सूरज की किरणों में, छिपी होती हैं ये शायद
जो पुरवाई पवन लाती, सुधा सी ओस की बूँदें!
टहलने चल पड़ें मित्रों, प्रकृति के रूप को निरखें
न जाने कब बिखर जाएँ, फरेबी ओस की बूँदें!
- कल्पना रामानी
चपल भँवरों की कलियों से, चुहल पर मुग्ध सी होतीं,
सुरों में साथ देती हैं, सुहानी ओस की बूँदें!
चितेरा कौन है जो रात, में जाजम बिछा जाता,
न जाने रैन कब बुनती, अकेली ओस की बूँदें!
करिश्मा है ये कुदरत का, या फिर जादू कोई उसका
घुमाकर जो छड़ी कोई, गिराती ओस की बूँदें!
नवल सूरज की किरणों में, छिपी होती हैं ये शायद
जो पुरवाई पवन लाती, सुधा सी ओस की बूँदें!
टहलने चल पड़ें मित्रों, प्रकृति के रूप को निरखें
न जाने कब बिखर जाएँ, फरेबी ओस की बूँदें!
- कल्पना रामानी
2 comments:
Its wonderful ..its one of best magical words collectionof u maa :) congrats
बेहतरीन बेहतरीन बहुत लाज़वाब हिंदी ग़ज़ल
प्रभात और प्रकृति की गोद में बैठ के ये निकली आपकी तरो-ताज़ा सोच, दिन को मंगलमय बना रही है आदरणीया दीदी कल्पना जी। बहुत बधाई
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