रचना चोरों की शामत

मेरे बारे में

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कल्पना रामानी

Sunday, 4 August 2013

कैसे सुफल पाएँगे आप
















हक़ किसी का छीनकर, कैसे सुफल पाएँगे आप?
बीज जैसे बो रहे, वैसी फसल पाएँगे आप।
 
यों अगर जलते रहे, कालिख भरे मन के दिये
बंधुवर! सच मानिए, निज अंध कल पाएँगे आप।
 
भूलकर अमृत वचन, यदि विष उगलते ही रहे
फिर निगलने के लिए भी, घट-गरल पाएँगे आप।
 
निर्बलों की नाव गर, मझधार मोड़ी आपने
दैव्य के इंसाफ से, बचकर न चल पाएँगे आप।
 
प्यार देकर प्यार लें, आनंद पल-पल बाँटिए
मित्र! तय है तृप्त मन, आनंद-पल पाएँगे आप।
 
शुद्ध भावों से रचें, कोमल गज़ल के काफिये
क्षुब्ध मन के पंक में, खिलते कमल पाएँगे आप।
 
याद हो वेदों की भाषा, मान संस्कृति का भी हो
हे मनुज! सम्मान का, विस्तृत पटल पाएँगे आप।


-कल्पना रामानी    

5 comments:

Unknown said...

वाह! बहुत ही सुन्दर! इसे जब भी पढ़ता हूं बस पढ़ते ही रहने को मन करता है।

Vindu babu said...

आदरणीया आपकी यह अप्रतिम प्रस्तुति 'निर्झर टाइम्स' पर लिंक की गई है।
http://nirjhar.times.blogspot.in पर आपका स्वागत् है,कृपया अवलोकन करें।
सादर

कालीपद "प्रसाद" said...

बहुत सुन्दर ग़ज़ल ,अर्थपूर्ण रचना

मेरे ब्लॉग को भी फलो करें ख़ुशी होगी
latest post नेताजी सुनिए !!!
latest post: भ्रष्टाचार और अपराध पोषित भारत!!

gumnaam pithoragarhi said...

gazal achchhi lagi badhai ,,,,,,,,,,,,,

Kailash Sharma said...

सच में हम अपने कर्मों के फल से कैसे बच सकते हैं...बहुत सुन्दर और सार्थक अभिव्यक्ति..

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