रचना चोरों की शामत

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कल्पना रामानी

Saturday, 13 July 2013

गगन में छाए हैं बादल


गगन में छाए हैं बादल, निकल के देखते हैं।
उड़ी सुगंध फिज़ाओं में चल के देखते हैं।
 
सुदूर गोद में वादी की, गुल परी उतरी
प्रियम! हो साथ तुम्हारा, तो चल के देखते हैं।
 
उतर के आई है आँगन, बरात बूँदों की
बुला रहा है लड़कपन, मचल के देखते हैं।
 
अगन ये प्यार की कैसी, कोई बताए ज़रा
मिला है क्या, जो पतंगे यूँ जल के देखते हैं।
 
नज़र में जिन को बसाया था मानकर अपना
फरेबी आज वे नज़रें, बदल के देखते हैं।
 
चले तो आए हैं, महफिल में शायरों की सखी
अभी कुछ और करिश्में, ग़ज़ल के देखते हैं।
 
विगत को भूल ही जाएँ, तो कल्पनाअच्छा
सुखी वही जो सहारे, नवल के देखते हैं।

-कल्पना रामानी


5 comments:

Guzarish said...

बहुत बढ़िया
आपकी इस प्रस्तुति की चर्चा कल सोमवार [05.08.2013]
गुज़ारिश दोस्तों की : चर्चामंच 1328 पर
कृपया पधार कर अनुग्रहित करें
सादर
सरिता भाटिया

Rajendra kumar said...

बहुत ही सुन्दर और सार्थक गज़ल प्रस्तुती,आभार।

Dr. Shorya said...

वाह ,लाजवाब , ढेरो शुभकामनाये ,

Unknown said...

Bahut hee behtreen......Waaah.

Unknown said...

Bahut hee behtreen......Waaah.

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