रचना चोरों की शामत

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कल्पना रामानी

Tuesday, 2 July 2013

बरसात का ये मौसम,कितना हसीन है!


















बरसात का ये मौसम, कितना हसीन है!
धरती गगन का संगम, कितना हसीन है!
 
जाती नज़र जहाँ तक, बौछार की बहार
बूँदों का नृत्य छम-छम, कितना हसीन है!
 
बच्चों के हाथ में हैं, कागज़ की किश्तियाँ
फिर भीगने का ये क्रम, कितना हसीन है!
 
विहगों की रागिनी है, कोयल की कूक भी
उपवन का रूप अनुपम, कितना हसीन है!
 
झूलों पे पींग भरतीं, इठलातीं तरुणियाँ
रस-रूप का समागम, कितना हसीन है!
 
मित्रों का साथ हो तो, आनंद दो गुना
नगमें सुनाता आलम, कितना हसीन है!
 
हर मन का मैल मेटे, सुखदाई मानसून
हर मन का नेक हमदम, कितना हसीन है!


-कल्पना रामानी

5 comments:

Rajendra kumar said...

आपकी यह रचना कल गुरुवार (04-07-2013) को ब्लॉग प्रसारण पर लिंक की गई है कृपया पधारें.

ashokjairath's diary said...

टेबल बरामदे का , ठंडाती गर्म चाय
यादों का शोर मद्धम कितना हसीन है

दिगम्बर नासवा said...

जाती नज़र जहाँ तक, बौछार की बहार,
बूँदों का नृत्य छम-छम, कितना हसीन है!..

बहुत ही लाजवाब ... नए काफिये बाखूबी इस्तेमाल किये हैं आपने ... मज़ा आ गया ...

5th pillar corruption killer said...

bahut aanand daayak hai ye aapki gazal !

Unknown said...

Bahut khubsurat rachna

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